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सोमवार, सितंबर 11

रस मकरंद बहा जाता है


रस मकरंद बहा जाता है

अंजुरी क्यों रिक्त है अपनी 
रस मकरंद बहा जाता है,
साज नवीन सजे महफिल में 
सन्नाटा क्यों कर भाता है !  

रोज भोर में भेज सँदेसे 
गीत जागरण वह गाता है, 
ढांप वसन करवट ले मनवा 
खुद से दूर चला जाता है ! 

त्याज्य हुआ जो यहाँ अभीप्सित 
हाल अजब न कहा जाता है, 
बैठा है वह घर के अंदर
जान सुदूर छला जाता है ! 

मुख मोड़े ही बीता जीवन 
बिन जिसके न रहा जाता है, 
क्यों कर दीप जले अंतर में 
सारा स्नेह घुला जाता है !