रस मकरंद बहा जाता है
अंजुरी क्यों रिक्त है अपनी
रस मकरंद बहा जाता है,
साज नवीन सजे महफिल में
सन्नाटा क्यों कर भाता है !
रोज भोर में भेज सँदेसे
गीत जागरण वह गाता है,
ढांप वसन करवट ले मनवा
खुद से दूर चला जाता है !
त्याज्य हुआ जो यहाँ अभीप्सित
हाल अजब न कहा जाता है,
बैठा है वह घर के अंदर
जान सुदूर छला जाता है !
मुख मोड़े ही बीता जीवन
बिन जिसके न रहा जाता है,
क्यों कर दीप जले अंतर में
सारा स्नेह घुला जाता है !