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शुक्रवार, जुलाई 30

एकांत और अकेलापन

एकांत और अकेलापन 

अकेलापन खलता है 

एकांत में अंतरदीप जलता है 

अकेलेपन के शिकार होते हैं मानव 

एकांत कृपा की तरह बरसता है !

जब भीड़ में भी अकेलापन सताए 

तब जानना वह एकांत की आहट है 

जब दुनिया का शोरगुल व्याकुल करे 

तब मानो एकांत घटने की घबराहट है !

अकेलापन दूजे की चाहत से उपजता है 

एकांत हर चाहत को गिरा देने का नाम है 

जब भीतर सन्नाटा हो इतना 

कि दिल की धड़कन सुनायी दे 

जब श्वासों में अनाम गूंजने लगे 

तब उस एकांत में एक मिलन घटता है 

मिटा देता है अकेलेपन का हर दंश जो सदा के लिए 

उसी मिलन का आकांक्षी है हर मन 

जो अकेलेपन में वह खोजता है 

यही अकेलापन बदल जाएगा एकांत में एक दिन 

और अपनेआप से मुलाक़ात होगी 

फिर तो दिन-रात कोई साए की तरह साथ रहेगा 

जब चाहा उससे बात होगी !