याद दिलाता है हर मंजर
सूना-सूना घर तकता है
मालिक घर के कहाँ गये,
खाली कमरा दिक् करता है
जल्दी लौटें जहाँ गये !
हर इतवार को जिसे संवारा
पूजा का कमरा भी उदास,
बाग-बगीचा, सब्जी बाड़ी
देख रहे भर मन में आस !
गिरे हुए हैं कई आमले
ग्राहक नजर नहीं आता,
लाल टमाटर पक-पक झरते
कोई उनको नहीं उठाता !
मधुर ध्वनि शंख की अब तो
सुबह नहीं देती है सुनाई,
रामायण का पाठ न होता
अखबार भी बंद कराई !
स्वाद दाल का कोई न भूला
‘कटहल’ भी आया है घर,
बिना आपके कुछ न भाता
याद दिलाता है हर मंजर !
सभी याद करते हैं पल पल
मीरा, शिव भी राह निहारें,
हरसिंगार के फूल झरे हैं
याद सदा करती हैं बहारें !
कितनी खुशियाँ बाट जोहतीं
नतिनी की शादी है सिर पर,
एक यात्रा भी करनी है
बुला रहा बनारस का घर !
शक्ति दाता देगा शक्ति
भोलेबाबा भला करेंगे,
भीतर जो ऊर्जा छिपी है
उसे जगा के स्वस्थ करेंगे !
(पिताजी कुछ दिनों से अस्पताल में हैं.)
मीरा, शिव - नैनी के बच्चे
दाल- वे अच्छी बनाते हैं
कटहल- उन्हें पसंद है
मीरा, शिव - नैनी के बच्चे
दाल- वे अच्छी बनाते हैं
कटहल- उन्हें पसंद है