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शनिवार, मई 4

याद दिलाता है हर मंजर




याद दिलाता है हर मंजर

सूना-सूना घर तकता है
मालिक घर के कहाँ गये,
खाली कमरा दिक् करता है
जल्दी लौटें जहाँ गये !

हर इतवार को जिसे संवारा
पूजा का कमरा भी उदास,
बाग-बगीचा, सब्जी बाड़ी
देख रहे भर मन में आस !

गिरे हुए हैं कई आमले
ग्राहक नजर नहीं आता,
लाल टमाटर पक-पक झरते
कोई उनको नहीं उठाता !

मधुर ध्वनि शंख की अब तो
सुबह नहीं देती है सुनाई,
रामायण का पाठ न होता
अखबार भी बंद कराई !

स्वाद दाल का कोई न भूला
कटहल भी आया है घर,
बिना आपके कुछ न भाता
याद दिलाता है हर मंजर !

सभी याद करते हैं पल पल
मीरा, शिव भी राह निहारें,
हरसिंगार के फूल झरे हैं
याद सदा करती हैं बहारें !

कितनी खुशियाँ बाट जोहतीं
नतिनी की शादी है सिर पर,
एक यात्रा भी करनी है
बुला रहा बनारस का घर !

शक्ति दाता देगा शक्ति
भोलेबाबा भला करेंगे,
भीतर जो ऊर्जा छिपी है
उसे जगा के स्वस्थ करेंगे !

(पिताजी कुछ दिनों से अस्पताल में हैं.)
मीरा, शिव - नैनी के बच्चे 
दाल- वे अच्छी बनाते हैं 
कटहल- उन्हें पसंद है