यदि मुक्त हुआ चाहो
जो दर्द छुपा भीतर
खुद तुमने उसे गढ़ा,
नाजों से पाला है
खुद उसको किया बड़ा !
तुमने ही माँगा है
ऊर्जा पुकारी है,
यदि मुक्त हुआ चाहो
अभिलाष तुम्हारी है !
हम ही कर्ता-धर्ता
हमने ही भाग्य रचा,
अजाने में ही सही
दुःख भरी लिखी ऋचा !
अब हम पर है निर्भर
यह दांव कहाँ खेलें,
जीवन शतरंज बिछा
कैसे यह चाल चलें !
सुख की यदि चाह तुम्हें
कुछ बोली लग जाये,
क्या कीमत दे सकते
यह सर भी कट जाये !