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शनिवार, जुलाई 1

यदि मुक्त हुआ चाहो



यदि मुक्त हुआ चाहो


जो दर्द छुपा भीतर

खुद तुमने उसे गढ़ा, 

नाजों से पाला है

खुद उसको किया बड़ा !


तुमने ही माँगा है

ऊर्जा पुकारी है,

यदि मुक्त हुआ चाहो

अभिलाष  तुम्हारी है !


हम ही कर्ता-धर्ता

हमने ही भाग्य रचा,

अजाने में ही सही

दुःख भरी  लिखी ऋचा !


अब हम पर है निर्भर

यह दांव कहाँ खेलें,

जीवन शतरंज बिछा

कैसे यह चाल चलें !


सुख की यदि चाह तुम्हें

कुछ बोली लग जाये, 

क्या कीमत दे सकते

यह सर भी कट जाये !