शनिवार, जुलाई 1

यदि मुक्त हुआ चाहो



यदि मुक्त हुआ चाहो


जो दर्द छुपा भीतर

खुद तुमने उसे गढ़ा, 

नाजों से पाला है

खुद उसको किया बड़ा !


तुमने ही माँगा है

ऊर्जा पुकारी है,

यदि मुक्त हुआ चाहो

अभिलाष  तुम्हारी है !


हम ही कर्ता-धर्ता

हमने ही भाग्य रचा,

अजाने में ही सही

दुःख भरी  लिखी ऋचा !


अब हम पर है निर्भर

यह दांव कहाँ खेलें,

जीवन शतरंज बिछा

कैसे यह चाल चलें !


सुख की यदि चाह तुम्हें

कुछ बोली लग जाये, 

क्या कीमत दे सकते

यह सर भी कट जाये !


12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 02 जूलाई 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा धन्यवाद!

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  2. बहुत खूब ल‍िखााअनीता जी, अजाने में ही सही

    दुःख भरी लिखी ऋचा !...वाह

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  3. जीवन की शतरंजी चाल में विजय रूपी सुख पाने की चाहत में कभी-कभी सर ही कलम हो जाता है

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  4. आपका कहना सही है, साथ ही यदि सदा के लिए दुख से मुक्ति चाहिये तो सर कटाने के लिए तैयार रहना होगा

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  5. सब कुछ स्वयं पर ही निर्भर है ... सुख, दुःख या कुछ और की चाह ...
    सार्थक लेखन ...

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