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मंगलवार, मई 7

ऐसा भी होता जीवन में


ऐसा भी होता जीवन में



छा जाता भीतर सन्नाटा
कोई शब्द न लेता श्वास,
कविता जैसा कुछ उभरेगा
नहीं जगाता कोई आस !

जैसे बंद गली हो आगे
भान हुआ तो होती खीझ,
वैसे इस मन का सूनापन
कैसे इस पर जाएँ रीझ !

जहां खिले थे कमल हजारों
आज वहाँ मटियाला सा जल,
जहां रचे थे गीत हजारों
आज वहाँ न कोई हलचल !

ऐसा भी होता जीवन में
धारा समय की रुख मोड़ती,
आज जहाँ रेतीले मंजर
कभी वहीं थी नदी गुजरती !

दूर खड़ा होकर जो देखे
इस प्रपंच से न उलझे,
वरना गुंथे हुए हैं रस्ते
कैसे इसके बल सुलझें !