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बुधवार, अप्रैल 21

राम की छवियाँ जो हर मन में बसी हैं

 राम की छवियाँ जो हर मन में बसी हैं 

पैरों में पैजनियां पहने 

घुटनों-घुटनों चलते राम, 

माँ हाथों में लिए कटोरी

आगे आगे दौड़ते  राम !


गुरुकुल में आंगन बुहारते 

गुरू चरणों में झुकते राम, 

भाइयों व मित्रों को पहले 

निज हाथों से खिलाते राम !


ताड़का सुबाहु विनाश किया 

 यज्ञ की रक्षा करते राम, 

शिव का धनुष सहज ही तोडा 

जनक सुता को वरते राम !


जन-जन के दुःख दर्द को सुनें 

अयोध्या के दुलारे राम, 

राजा उन्हें बनाना चाहें  

पिता नयनों के तारे राम !


माँ की चाहना पूरी करने  

जंगल-जंगल घूमते राम, 

सीता की हर ख़ुशी चाहते 

हिरन के पीछे जाते राम !


जटायु को गोदी में लेकर 

आँसूं बहाते व्याकुल राम, 

खग, मृग, वृक्षों, बेल लता से 

प्रिया का पता पूछते राम !


शबरी के जूठे बेरों को 

बहुत स्वाद ले खाते राम, 

हनुमान कांधों पर बैठे 

सुग्रीव मित्र बनाते राम !


छुप कर बालि को तीर चलाया 

दुष्टदलन भी करते राम, 

हनुमान को दी अंगूठी 

याद सीता को करते राम !


सागर पर एक सेतु बनाया 

शिव की पूजा करते राम, 

असुरों का विनाश कर लौटे 

पुनः अयोध्या आते राम !


सारे भूमण्डल में फैली 

रामगाथा में बसते राम, 

जन्मे चैत्र शुक्ल नवमी को

मर्यादा हर सिखाते राम !