गगन अपना लगेगा जगेंगी पाँखें
अभावों का भाव नजर आता है
भावों का अभाव खले जाता है,
‘नहीं है’ जो, टिकी उस पर दृष्टि
जो ‘है’, कोई देख नहीं पाता है !
जगे, पर सोने का अभिनय करते
नित नूतन रंग सपनों में भरते,
जानते, पल दो पल का भ्रम ही है
सामना सत्य का करने से डरते !
जागे हुओं को जगाना है मुश्किल
पानी से तेल नहीं होता हासिल,
फिर भी कोशिश किये जाते हैं वे
दूर निकले जो कैसे पायें साहिल !
कभी तो होश आएगा खुलेंगी आँखें
गगन अपना लगेगा जगेंगी पाँखें,
देर न हो जाये बस डर यही है
रिस रहा जीवन हैं लाखों सुराखें !