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शुक्रवार, जनवरी 24

उन सब बालिकाओं के लिए जिनका पहला जन्मदिन आने वाला है

पहले जन्मदिन पर


ओ नन्ही मुन्नी गुड़िया !
ठीक बरस भर पहले तूने
मध्य अपनों के आँखें खोलीं
दरस दिया !

पतले नाजुक अंग
लालिमा युक्त, परी सी हल्की
स्वच्छ नयन थे, कोमल केश
स्निग्ध स्पर्श, अनूठा वेश
लेकिन तब भी नाना-नानी 
दादा-दादी को एक अनोखा
स्नेह दिया !

कभी जगाया घर भर को
कभी हंसाया भोलेपन से
इतना सा मन, छोटा सा तन
पर तूने अस्त्तित्व से अपने
सारे घर का कोना-कोना
भर दिया !

अब तू नन्हे कदम बढ़ाती
 तुतलाहट से कभी लुभाती
न जाने अंतर में कितनी
साध लिए जग में तू आयी
हों स्वप्न साकार, माँ-पापा ने जो
बुना किया !

पापा कहकर जिसे बुलाती
वह तेरे बचपन के साथी
रोता तुझे देख न पाते
झट बाँहों में ले झुलाते
पल-पल तेरे नाज उठाते
दुनिया से परिचय करवाते
दिन भर की थकन को नहीं कभी
जाहिर किया !

अभी बोल मुँह से न फूटे
 पर जो तुझसे बातें करती थी
तू जिसकी धड़कन से परिचित
एक-दूजे को खूब समझती
उस माँ की आँखों का तारा
तुझसे ही जिसका जग सारा
मुस्कानों को देख तेरी भर जाता
उसका हिया !

चाचा, बुआ, फूफा, मामा
मामी, मासी, मौसा सबके
दिल में रहती खुशियाँ देती
दादाजी को तूने ही तो
कविता करना सिखा दिया 
है सभी की लाडली तू
ओ दुलारी बिटिया !





रविवार, जनवरी 1

कब होगा जागरण



कब होगा जागरण

बूढी परी ने शाप दिया था उस दिन
सो गया सारा देश
राजभवन के चारों ओर उग आये बड़े बड़े जंगल
थम गया था जीवन
गुम हो गए लोग गहरी नींद में
लेकिन स्वप्न चलते रहे थे भीतर
स्वप्न में वे विचरते थे भीतर
खुले मैदानों में...
खाते-पीते थे... जगने की फ़िक्र ही नहीं की उन्होंने...
स्वप्न में ही जी ली थी पूरी सदी
और फिर... आया था राजकुमार
सोयी राजकुमारी को जगाने
लेकिन गहरी निद्रा का मोह घना था
स्वप्न में ही चल रहा है खेल
और मुस्का रहा है राजकुमार
नींद में ही गढ़ ली है उन्होंने उसकी मूर्ति
और पूजा कर रहे है...
अचरज में पड़ा वह ढूँढने निकल पड़ा है
बूढी परी को...