पहले जन्मदिन पर
ओ नन्ही मुन्नी गुड़िया !
ठीक बरस भर पहले तूने
मध्य अपनों के आँखें खोलीं
दरस दिया !
पतले नाजुक अंग
लालिमा युक्त, परी सी हल्की
स्वच्छ नयन थे, कोमल केश
स्निग्ध स्पर्श, अनूठा वेश
लेकिन तब भी नाना-नानी
दादा-दादी को एक अनोखा
स्नेह दिया !
कभी जगाया घर भर को
कभी हंसाया भोलेपन से
इतना सा मन, छोटा सा तन
पर तूने अस्त्तित्व से अपने
सारे घर का कोना-कोना
भर दिया !
अब तू नन्हे कदम बढ़ाती
तुतलाहट से कभी लुभाती
न जाने अंतर में कितनी
साध लिए जग में तू आयी
हों स्वप्न साकार, माँ-पापा
ने जो
बुना किया !
पापा कहकर जिसे बुलाती
वह तेरे बचपन के साथी
रोता तुझे देख न पाते
झट बाँहों में ले झुलाते
पल-पल तेरे नाज उठाते
दुनिया से परिचय करवाते
दिन भर की थकन को नहीं कभी
जाहिर किया !
अभी बोल मुँह से न फूटे
पर जो तुझसे बातें करती थी
तू जिसकी धड़कन से परिचित
एक-दूजे को खूब समझती
उस माँ की आँखों का तारा
तुझसे ही जिसका जग सारा
मुस्कानों को देख तेरी भर
जाता
उसका हिया !
चाचा, बुआ, फूफा, मामा
मामी, मासी, मौसा सबके
दिल में रहती खुशियाँ देती
दादाजी को तूने ही तो
कविता करना सिखा दिया
है सभी की लाडली तू
ओ दुलारी बिटिया !
सुंदर, सभी बेटियों को हमारी भी शुभकामना।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंकितने सुन्दर भाव हैं आपके.. इतना सुन्दर ह्रदय का उदगार व्यक्त करती हैं आप कि...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावों से सजी पोस्ट |
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