मन राधा बस उसे पुकारे
झलक रही नन्हें पादप में
एक चेतना एक ललक,
कहता किस अनाम प्रीतम हित
खिल जाऊँ उडाऊं महक !
पंख तौलते पवन में पाखी
यूँ ही तो नहीं हैं गाते,
जाने किस छुपे साथी को
टी वी टुट् में वे पाते !
चमक रहा चिकना सा पत्थर
मंदिर में गया जो पूजा,
जाने कौन खींच कर लाया
भाव जगे न कोई दूजा !
चला जा रहा एक बटोही
थम कर किसकी ओर निहारे,
गोविन्द राह तके है भीतर
मन राधा बस उसे पुकारे !