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गुरुवार, जुलाई 28

जाग कर देखें जरा

जाग कर देखें जरा 


कैद पाखी क्यों रहे 

जब आसमां उड़ने को है,

सर्द आहें क्यों भरे 

नव गीत जब रचने को है !


सामने बहती नदी 

भला ताल बन कर क्यों पलें,

छांव शीतल जब मिली 

घनी धूप बन कर क्यों जलें !


क्षुद्र की क्यों मांग जब

महा उच्च सम्मुख हो खड़ा,

क्यों न बन दरिया बहे 

भरा प्रेम भीतर है बड़ा !


तौलने को पर मिले 

प्रतिद्वंद्विता उर क्यों भरें,

आस्था की राह पर 

शुभ मंजिलें नई तय करें !


 धुन सदा इक गूंजती  

वहाँ शोर से क्यों जग भरें,

छू रहा हर पल हमें 

पीड़ा विरहन की क्यों सहें !


जाग कर देखें जरा 

हर ओर उसकी सुलभ छटा,

प्राण बन कर साथ जो 

 भिगो मन गया बन कर घटा !


 रूप के पीछे छिपा 

सदा प्राप्य अपना हो वही,

 नाम में सबके बसा   

वही नाम जिसका है नहीं !


शनिवार, मई 25

मन राधा बस उसे पुकारे


मन राधा बस उसे पुकारे


झलक रही नन्हें पादप में
एक चेतना एक ललक,
कहता किस अनाम प्रीतम हित
खिल जाऊँ उडाऊं महक !

पंख तौलते पवन में पाखी
यूँ ही तो नहीं हैं गाते,
जाने किस छुपे साथी को
टी वी टुट् में वे पाते !

चमक रहा चिकना सा पत्थर
मंदिर में गया जो पूजा,
जाने कौन खींच कर लाया
भाव जगे न कोई दूजा !

चला जा रहा एक बटोही
थम कर किसकी ओर निहारे,
गोविन्द राह तके है भीतर
मन राधा बस उसे पुकारे !