बारात लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
बारात लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, नवंबर 22

प्रेम की सीढ़ी मन चढ़ता है



प्रेम की सीढ़ी मन चढ़ता है


रेशमी ख्वाब बुनने हैं, रोशनी के गीत गुनने हैं
चांदनी चादर बिछा दो, फूल कुछ खास चुनने हैं


पांखुरी पांखुरी बोल रही है
कली ने सुगबुग ऑंखें खोलीं,
सज गयी बारात सुरभि ले
फूलों की ही सजी है डोली !

कमल नयन हैं जिसके सुंदर
कमल उसे भाते हैं मनहर,
मंदिर मंदिर कमल सजे हैं
कमल खिले हैं मन के भीतर !

गीत गूंजते मधुर निरंतर
नूर, नाद, अमृत भी बरसे,
हीरे, मोती, माणिक चमके
पल-पल द्युति अनुपम इक बरसे !

भीतर जब सूरज उगता है
प्रेम की सीढ़ी मन चढ़ता है,
झिलमिल ज्योत जिस दीये की
दिल के मंदिर में जलता है !