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गुरुवार, सितंबर 5

वक्त की चादर


वक्त की चादर


सामने बिछी है वक्त की चादर
अपनी चाहतों के बूटे काढ़ सको
तो काढ़ लो !
क्योंकि वक्त..
मुट्ठी से रेत की तरह
फिसल जायेगा
 और फिर कीमत चुकानी होगी
निज स्वप्नों से !

सुंदर, श्वेत चादर पर
 रंगीन बूटे
हौसला बढ़ाएंगे दूर तक
साथ रहेगी उनकी सुघड़ता
खुशनुमा हो जाएगा  सफर
 रेशमी धागों की सरसराहट से !

 सिमट जाये ये चादर इसके पूर्व
 उकेर दो... अपनी चाहतों के बूटे !