वक्त की चादर
सामने बिछी है वक्त की चादर
अपनी चाहतों के बूटे काढ़ सको
तो काढ़ लो !
क्योंकि वक्त..
मुट्ठी से रेत की तरह
फिसल जायेगा
और फिर कीमत चुकानी होगी
निज स्वप्नों से !
सुंदर, श्वेत चादर पर
रंगीन बूटे
हौसला बढ़ाएंगे दूर तक
साथ रहेगी उनकी सुघड़ता
खुशनुमा हो जाएगा सफर
रेशमी धागों की सरसराहट से !
सिमट जाये ये चादर इसके पूर्व
उकेर दो... अपनी चाहतों के
बूटे !