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गुरुवार, अप्रैल 6

अमिलन


अमिलन

लाख मिलाएँ

 शक्कर और रेत 

जैसे नहीं मिलते 

आत्मा और देह वैसे ही हैं 

अंतत: शक्कर भी 

परमाणुओं से बनी है 

रेत की तरह 

देह भी बनी है 

उसी तत्व से जिससे 

आत्मा गढ़ी है 

स्वयं भू ! चिन्मय !

और कोई चुनाव कर सकता है 

सदा ही 

जो स्थूल है 

जिसे देखा, सुना, सूंघा जा सकता है 

दूजी वायवीय जिसमें डूबकर 

वही हुआ जा सकता है 

एक में खुद पर चार चाँद

लगाए जा सकते हैं 

एक में खुद को मिटाया जाता है 

लगाओ लाख तमग़े 

मृत्यु का एक झटका 

सब छीन लेता है 

मिटकर जो मिलता है 

वह रहता है मृत्यु के पार भी 

इसीलिए वेद गाते हैं 

तुम हो वही ! 

गुरुवार, सितंबर 5

वक्त की चादर


वक्त की चादर


सामने बिछी है वक्त की चादर
अपनी चाहतों के बूटे काढ़ सको
तो काढ़ लो !
क्योंकि वक्त..
मुट्ठी से रेत की तरह
फिसल जायेगा
 और फिर कीमत चुकानी होगी
निज स्वप्नों से !

सुंदर, श्वेत चादर पर
 रंगीन बूटे
हौसला बढ़ाएंगे दूर तक
साथ रहेगी उनकी सुघड़ता
खुशनुमा हो जाएगा  सफर
 रेशमी धागों की सरसराहट से !

 सिमट जाये ये चादर इसके पूर्व
 उकेर दो... अपनी चाहतों के बूटे !