जीवन का जो मोल न जानें
दुश्मन मित्र बने बैठे हैं
बाहर वाले लाभ उठाते,
लोभ, मोह से बिंधे यदि जन
बाहर भी निमित्त बन जाते !
पहले ख़ुद को बलशाली कर
घर भेदी का करें सफ़ाया,
बाहर वाले तोड़ सकें ना
बने सुरक्षा का इक घेरा !
जीवन का जो मोल न जानें
ऐसे असुरों से लड़ना है,
अंधकार में भटक रहा हैं
दर्प भ्रमित मन का हरना है !