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मंगलवार, अप्रैल 22

वेद ऋषि

वेद ऋषि 

वे जो भावों की नदियाँ बहाते हैं 

वे जो शब्दों की फसलें उगाते हैं 

बाड़ लगाते हैं विचारों की 

उन्हें कुछ मिला है 

शायद किसी बीज मंत्र सा 

जिसे बोकर वे बाँटना चाहते हैं 

कुछ पाया है जिसे लुटाना है 

माना कि वे बीजों के जानकार नहीं 

पर आनन्दग्राही हैं 

प्रेम को चखा है 

और रस से भरा है 

लबालब उनका अंतर 

वे अनायास ही आ गये  हैं 

उस घेरे में 

जहाँ मौन प्रखर हो जाता है 

और वहीं कोई कान्हा 

बंसी बजाता है !


गुरुवार, अगस्त 4

आज़ादी का अमृत महोत्सव

आज़ादी का अमृत महोत्सव 


सप्त  दशकों व पाँच वर्ष का  

सफ़र तय किया है भारत ने ? 

आदि सनातन संस्कृति अनुपम 

राह दिखायी जग को जिसने !


जूझा कभी ग़ुलामी से जो  

बन सामर्थ्यवान बलशाली, 

राष्ट्र स्मरण करता, जिन्होंने 

आज़ादी मशाल थी बाली !


वेदों की ऋचाएँ  गूंजी 

श्रद्धा, ज्ञान, योग  का  बल है, 

भारत भाल गर्व से दमके 

आदि काल से एक राष्ट्र है !


कालजयी परंपराएँ हैं 

विविधताओं में है एकत्व, 

सर्व में छुपा  ब्रह्म  देखता 

धर्म उदार भारत का तत्व !


अति समृद्ध इतिहास मनोरम 

साहित्य बहे विमल धार सा, 

गंगा, यमुना कावेरी ने,  

 इस भू को माँ बन संवारा !


वनवासी, जनजाति संस्कृति 

भारत के हर प्रांत को जोड़े, 

अंतर्निहित एकता पोषक 

कैसे कोई इसको तोड़े !


वेदों से यह नाम मिला है 

अजर  शाश्वत शुभ ज्योति स्वरूप, 

सह अस्तित्त्व सिखाता भारत 

जाने भेद यह छिपा अरूप !