हर कोई अपने जैसा है
न ऐसा न ही वैसा है, बस
हर कोई अपने जैसा है !
भोला शावक भरे कुलाँचे
वनराजा की शान अनोखी,
गाँव की ग्वालिनें प्यारी हैं
गरिमामयी महारानी भी !
यहाँ न कोई कम या ज़्यादा
आख़िर नर है न कि पैसा है,
न ऐसा न ही वैसा है, बस
हर कोई अपने जैसा है !
कारीगर, मज़दूर न होते
महल-दुमहले कैसे बनते,
अल्पज्ञ, अज्ञानी यदि न हो
गुरुजनों को कौन पूछते !
मित्र बने समझ यही अपनी
फिर दुःख जीवन में कैसा है ?
न ऐसा न ही वैसा है, बस
हर कोई अपने जैसा है !