सारे जग को मीत बना लें
सीखें जगना और जगाना
गीतों में संदेश सुनाना,
जिसके बिन है सूना जीवन
पाकर ख़ुद को उसको पाना !
जग के आकर्षण में फँसकर
भूल गए हम अपना ही घर,
जहाँ एक दिन सबको जाना
जहाँ नित्य गूँजते मुक्ति स्वर !
अभी कहाँ जग पाकर पाया
केवल भ्रम को गले लगाया,
जग यह, तब ही, अपना होगा
जब जगदीश जाग कर ध्याया !
छल का ही व्यापार यहाँ है
जीवन का आधार कहाँ है ?
जिन बातों पर मर मिट जाते
उनमें कोई सार कहाँ है ?
झूठ-मूठ ही खेला करते
अपनेपन का दम हम भरते,
स्वयं से ही यहाँ प्रेम किया
प्रेम कहाँ दूजों से करते !
एक बार छू लें निज जड़ को
फिर चाहे अंबर को छू लें
स्रोत प्रेम का भीतर पाकर
सारे जग को मीत बना लें !
अनिता निहालानी
१३ अक्तूबर २०१०
"छल का ही व्यापार यहाँ है
जवाब देंहटाएंजीवन का आधार कहाँ है ?
जिन बातों पर मरते मिटते
उनमें कोई सार कहाँ है ?
झूठ-मूठ ही खेला करते
अपनेपन का दम हम भरते
निज से ही जो प्रेम किया न
प्रेम कहाँ दूजों से करते "
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ........दिल को छू लेने वाली........कितनी सच्चाई होती है आपकी कविताओं में.......शानदार |
एक बार बस मूल को पालें
जवाब देंहटाएंफिर चाहे छलांग लगा लें
स्रोत ऊर्जा का भीतर पा
सारे जग को मीत बना लें !
..बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..
sunder sandesh yukt rachnaa..
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