नीड़ बनाना चाहे चिड़िया 
जाने बनी है किस माटी की
बड़ी हठीली, जिद की पक्की,
नन्हीं जान बड़ी फुर्तीली 
लगती है थोड़ी सी झक्की ! 
सूखे पत्ते, घास के तिनके 
सूखी लकड़ी, कपड़े लत्ते 
चोंच में भर-भर लाती चिड़िया
नीड़ बनाना चाहे चिड़िया ! 
बाहर पूरी कायनात है 
चाहे जहाँ बनाये घर वो  
न जाने क्यों घर के भीतर 
बसना उसको भाए अब तो ! 
पूजा वाली शेल्फ पे बैठी 
कभी ठिकाना अलमारी पर
इधर भगाया उधर आ गयी 
विरोध जताती चीं चीं कर !  
हार गए सभी किये उपाय 
तोड़ दिया घर कितनी बार 
लेकिन उसका धैर्य अनोखा 
फिर-फिर लाती तिनके चार ! 
बंद हुआ जो एक मार्ग तो 
झट दूजा उसने खोज लिया 
खिडकी की जाली से आयी  
कैसे निज तन को दुबलाया ! 
शायद उसको जल्दी भी हो 
अब नयी जगह ढूंढे कैसे 
अप्रैल आधा बीत गया है 
घर बस जाये जैसे तैसे !
अनिता निहालानी 
२९ अप्रैल २०११  

 
कितने सुंदर भाव हैं और किस खूबसूरती से आपने उकेरे हैं ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन ..!!
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.......घर की ज़रुरत तो सभी को है......और ये पक्षी तो लगन और मेहनत के पुतले हैं........बहुत सुन्दर........यहाँ एक बात कहूँगा - 'बाहर पूरा कायनात है'.......यहाँ 'पूरी' होना चाहिए था क्योंकि कायनात को स्त्रीलिंग के रूप में लिखते है जैसे - दुनिया |
पर अगर ये टाइपिंग की गलती है तो कोई बात नहीं........
इमरान जी, बहुत बहुत धन्यवाद, मेरा उर्दू का ज्ञान बढ़ाने के लिये..यह टाइपिंग की गलती हरगिज नहीं है
जवाब देंहटाएंनन्ही चिड़िया के मूक शब्दों को परिभाषित करती खुबसूरत रचना |
जवाब देंहटाएंbahut khubsurat rachna hai..
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली , चित्ताकर्षक लगी .. शुभकामनायें
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