हिंदी दिवस पर जन्मी वीना श्रीवास्तव खामोश खामोश और हम की अगली कवयित्री हैं.
वर्तमान में रांची में रहने वाली वीना जी स्वतंत्र लेखन करती हैं व ब्लॉग
लिखती हैं. इनकी नौ कवितायें इस सकलंन में सम्मिलित हैं. इनकी कवितायें रूमानी
प्रेम व सपनों की बातें करती हैं, प्रकृति की सुंदरता की छवि बिखेरती हैं और
जिंदगी के कई पहलुओं को धीरे से उठाती हैं.
इनकी पहली कविता है - अस्तित्त्व बोध जिसमें कवयित्री प्रियतम की याद
को ही अपने अस्तित्त्व बोध का कारण बताती है
मीठी सी याद
गुनगुनाती है
जब भी
खिलखिलाते हैं तारे
पुरवाई देती हैं मधुर स्वर
...
ख़ामोशी में गूंजती
तुम्हारी आवाज
निकल जाती है
चीरती हुई दिल को
बह जाती है
..
तुम्हारे होने का अहसास
तुम्हारी यादों से है
मेरे जीवन का अस्तित्त्व
मेरे होने का बोध
...
दूसरी कविता चाहत में प्रेम की अनछुई सी पुलक का अहसास होता है –
हर दिन की
चाहत में
होता है एक खुशनुमा रात का अरमां
रात आये
दिन भी झूमता-गाता
मदमस्त पवन के
झोंकों में
सिंदूरी रंग भरकर
छुप जाये
रात के सीने में
...
..
बिखरा दे फिर
जगमग किरणें
..
चाँद की रोशनी में
बिखर जाये
संगमरमर की मूरत
और ढल जाये
जरूरी है तुम्हारा बरसना भी एक प्रेम कविता है जिसमें मरुस्थल, पपीहा और बादल
के प्रतीकों का सहारा लेकर प्रेम की तीव्रता को दर्शाया है
तुम नहीं जानती
मैं कितना प्यासा हूँ
दूर दूर तक फैला
ये मरुस्थल
झुलसा रहा है मुझे
...
पपीहे को क्यों भाता है
स्वाति नक्षत्र का जल
..
उसे स्वाति नक्षत्र चाहिए
मुझे तुम
...
हरियाली बिखरने के लिये
जरूरी है तुम्हारा बरसना
...
कोना कोना प्यार में कवयित्री बड़ी सहजता से मन में जगी ईर्ष्या की
भावना के दंश से बचने के लिये प्यार को उपाय बनाती है
जब जब
मन के किसी कोने में
पांव पसारती है ईर्ष्या
मोतियों की तरह
बिखर जाती हैं खुशियाँ
...
जो डसती है
सुख-चैन
इसलिए मन का कोना कोना
..
भर दो प्यार से
..
फलने फूलने दो
सुखों को
इंतजार में भी इस विशाल कायनात में होती पल पल की प्रतीक्षा
को आधार बना कर प्रेम का ही इजहार किया गया है
ये इंतजार
किसका है
रात
को दिन का या दिन को रात का
..
कान सुनने को बेचैन हैं
वो मीठी बातें
या बातों को इंतजार है
उन कानों का
जहाँ वह घोलेगी मिश्री
..
जीवन के प्रति गहन प्रेम दर्शाता है जीवन खत्म नहीं होता
अभी खत्म नहीं हुआ है
इंतजार
आंच बाकी है
चूल्हे में
फांस बाकी है
दिल में
चुभन की टीस है
पांव में
माँ की सीख है
जीवन में
..
नन्हें हाथों को तलाश है
दामन की
दिनों की तलाश है
महीनों की
..
इंतजार अनवरत
क्योंकि
जीवन कभी खत्म नहीं होता
मैं सदा जीवित रहूंगी में कवयित्री स्वप्न और वास्तविकता में भेद बताती हुई
जीवन की शाश्वतता का चित्रण करती है -
तुम क्यों जी रहे हो
स्वप्नों के संसार में
क्या रखा है
सपनों में
..
हकीकत में नहीं दे पायोगे
स्वप्नों सा जीवन
...
मेरा जीवन है
तुम्हारे स्वप्नों में
..
मैं सदा जीवित रहूंगी
तुम्हारे स्वप्नों में
प्रेम का एक अभिन्न पक्ष है विरह तुम नहीं आये में विरह की आग में तप
कर निखर आये प्रेम का चित्रण है
सब कुछ आता है
तुम नहीं आते
ये दिन ये रातें
आती-जाती हैं
एक के बाद एक
नैनों में बहते
आंसुओं में
दिल डूबता उतराता है
लेकिन तुम नहीं आते
..
..
रोज होती है सुबह
कोयल की कूक के साथ
..
बीत जाती हैं शामें ..
रात की रानी को महकाकर
तुम नहीं आते
..
ये जीवन भी
गुजरेगा यूँ ही
रिसेगा यूँ ही
नही होगा अंत
क्योंकि तुम नहीं आये
मौन से बातें करती कवयित्री अंत में ख़ामोशी में ही जीवन का उदेश्य पाती
है-
ख़ामोशी
तू क्यों मुझे भाती है
..
मैंने गुनगुनाया है तुझे
..
जीया है तुझे
भीड़ में
गाया है तन्हाइयों में
भिगोया है तुझे
आंसुओं में
...
चाँदनी रात में
खिलखिलाई है
किरणें बनकर
तपती धूप में
टपकी है पसीना बनकर
,..
क्या बताऊँ
क्या-क्या मिला तुझसे
जीवन मिला
और
जीने का उद्देश्य भी
वीना श्रीवास्तव की इन सरल भाषा में रची छंद मुक्त कविताओं को पढ़ते
हुए कभी भीतर मौन पसर जाता है, कभी कोई भूली बिसरी याद मन को हिला जाती है तो कभी
प्रकृति अपने सौंदर्य को साकार करती प्रतीत होती है. आशा है सुधी पाठक जन भी
इन्हें पढ़कर आह्लादित होंगे.
बहुत अच्छी समीक्षा...आभार
जवाब देंहटाएं.शानदार प्रस्तुति.बधाई.तुम मुझको क्या दे पाओगे?
जवाब देंहटाएंवाह ... समीक्षा लाजवाब है इस पुस्तक की ... कोमल मन से लिखी रचनाएं वीना जी की ...बधाई है उन्हें ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समीक्षा....
जवाब देंहटाएंआपकी समीक्षा सम्पूर्नता से रचना और रचनाकार की खासियत सामने लाती है।
जवाब देंहटाएंरचनाकार के ब्लॉग का लिंक भी दे देते तो उनकी रचनाओं को पढ़ने का सुख मिलता।
मनोज जी, आपका सुझाव मान्य है, भविष्य में ब्लॉग का लिंक अवश्य लिखूंगी. वीना जी के ब्लॉग का लिंक यह है-veenakesur.blogspot.com
हटाएंआदरणीया वीना जी ब्लॉग जगत में मेरे आने के साथ ही प्रेरणा स्रोत हैं।
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर समीक्षा के लिए बधाई..
जवाब देंहटाएंमाहेश्वरी जी, शालिनी जी, कैलाश जी, दिगम्बर जी, यशवंत जी, व अमृता जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंशानदार समीक्षा
जवाब देंहटाएंअनुपम प्रस्तुति.
शेयर करने के लिए आभार,अनीता जी.
मेरे ब्लॉग पर भी कुछ कहियेगा,अनीता जी.
राकेश जी, नेकी और पूछ पूछ, अवश्य कहेंगे आपके ब्लॉग पर..
हटाएंमैं बहुत समय बाद मेल खोल रही हूं. समय किसको किस तरह बांध देता है समझ ही नहीं आता.
जवाब देंहटाएंइतनी खूबसूरत समीक्षा और मैं ही अनजान.. शुक्रिया कहने से काम तो नहीं चलेगा...फिर भी दिल से आभार स्वीकार करिये....
मैं क्षमा चाहती हूं....
वीना जी, देर आयद दुरस्त आयद...अच्छा लगा आपका आना..आभार!
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