छा गयी जब बदलियाँ
हवा की सरगोशियाँ
पर झुलाती तितलियाँ,
डोलते से शाख-पत्ते
झूमती सी कहकशां !
एक चादर सी बिछी हो
या धरा पर चुनरियाँ ,
पुष्प जिस पर सज रहे हैं
मस्त यूँ नाचे फिजां !
आ गये मौसम सुहाने
छा गयी जब बदलियाँ,
धार अम्बर से गिरी ज्यों
रहमतें बरसें जवां !
गा रहे पंछी मगन हो
छा रही मदहोशियाँ,
हैं कहीं नजदीक ही वह
कह रही खामोशियाँ !
ठंडी फुहारों सी मन को आनंदित करती बहुत सुन्दर और प्रभावी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंbehtreen prastuti ....
जवाब देंहटाएंइस गर्मी में ताजगी देती प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकैलाश जी, सदा जी व रचना जी, स्वागत व् आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर अहसास लिए अच्छी रचना।
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