शनिवार, दिसंबर 20

फूलों की घाटी और हेमकुंड की यात्रा - २


फूलों की घाटी और हेमकुंड की यात्रा

दूसरा भाग




२ सितंबर २०२५

आज सुबह हम पंछियों के कलरव से उठ गये थे। रात्रि के सन्नाटे में नदियों की कलकल भी आ रही थी। कमरे से बाहर निकल कर टहलने गये, हवा शीतल थी और बहुत महीन हल्की सी फुहार पड़ रही थी। पहाड़ों की शुद्ध हवा जैसे भीतर तक ताजगी भर रही थी।नौ बजे हम आज की पहाड़ी यात्रा के लिए रवाना हुए। ड्राइवर सुरजीत सिंह घुमावदार रास्तों पर गाड़ी दौड़ाता हुआ दस हज़ार फ़ीट पर स्थित औली ले गया। यहाँ भी ब्लू पॉपी का एक रिज़ार्ट है। वहाँ से एक गाइड हमारे साथ हो लिया। हमारा लक्ष्य था गॉर्सन बुग्याल।गॉर्सन बुग्याल अल्पाइन घास का एक खूबसूरत मैदान है, जो हरे-भरे परिदृश्यों, ओक और देवदार के जंगलों और बर्फ से ढकी हिमालयी चोटियों के मनमोहक दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है, और यह गर्मियों में ट्रेकिंग व कैम्पिंग तथा सर्दियों में स्कीइंग के लिए एक लोकप्रिय स्थल है।बादलों के कारण हमें हिमशिखरों के दर्शन नहीं हुए, जिसके लिए यह स्थान प्रसिद्ध है। नंदा देवी, माना पर्वत, दूनगिरी जैसी चोटियों का मनोरम दृश्य यहाँ से दिखायी देता है।चेयर लिफ्ट से हम काफ़ी ऊँचाई तक पहुँच गये, जहाँ से असली पैदल चढ़ाई की शुरुआत होनी थी। वर्षा के कारण रास्ता कीचड़ भरा था, मैदान में  पशुओं के आने-जाने से गोबर पड़ा था, वहाँ दलदल सी हो गई थी; किंतु हम इन सब बाधाओं के लिए तैयार होकर आये थे, रेनकोट, ऐसे जूते जिसमें पानी का असर न हो, बड़ी सी हैट आदि सामानों से लैस होकर हम पक्के पर्वतारोही के भाव में भरे हुए थे। प्रकृति का ऐसा साथ जिसमें आकाश, भूमि, हवा, जल और वृक्ष सभी भीग रहे हों, हमें आगे बढ़ने से कैसे रोक सकता था। फारेस्ट गेट तक पहुँचते-पहुँचते हरे-भरे घास के मैदान दिखने लगे, जो हिमाचल व कश्मीर के चारागाहों की याद दिला रहे थे। मार्ग में हमने कई अनोखे फूलों के दर्शन किए, उनके चित्र लिए। पहाड़ों से बहती हुई अनेक छोटी-बड़ी जल धाराएँ आ रही थीं, जिन्हें भी पार करना था। दोपहर बाद लगभग भीगे हुए हम वापस पहुँच गये। दोपहर के भोजन में अन्य पदार्थों के अलावा भरवाँ बैंगन की सब्ज़ी व मसूर की साबुत दाल विशेष बनी थी। शाम को भी वर्षा की छुटपुट रिमझिम जारी रही।



३ सितंबर २०२५ 

आज सुबह भी नींद चार बजे खुल गई। मन उदात्त भावों से भरा था, ‘हिमालय’ पर चार कविताएँ लिखीं। कल सुबह यदि समय मिला तो कुछ और सृजन कार्य हो सकता है। आज भी नाश्ते में पोहा था, जिसमें हरे मटर तथा मूँगफली पड़े थे। साढ़े नौ बजे हम स्थानीय मंदिर देखने निकले। सबसे पहले आदि शंकराचार्य ज्योतिर्मठ गये। जहाँ पुजारी श्री विष्णु प्रियानंद जी ने मंदिर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। इस मठ में चौंसठ योगिनियों की मूर्तियाँ हैं, उनके नाम भी लिखे हैं। वे आदि शक्ति ललिताम्बा की अनुचरियाँ हैं। जिन्हें त्रिपुर सुंदरी भी कहते हैं, वह दस महाविद्याओं में से एक षोडशी विद्या हैं। ‘सौंदर्य लहरी’ में आदि शंकराचार्य ने उन्हीं की वंदना की है। नवरात्रि में पूजे जाने वाले देवी के नौ रूप पार्वती के नौ रूप हैं। हमने त्रिपुरा देवी के दर्शन भी किए तथा वह गुफा भी देखी, जहाँ आदि शंकराचार्य ने तपस्या की थी। बारह सौ वर्ष पुराने प्राचीन कल्पवृक्ष के दर्शन भी हुए। जिसके नीचे उन्होंने ज्ञान ज्योति पायी थी।यह मठ अद्वैत के चिंतन और अध्ययन को समर्पित है। उन्होंने शंकर भाष्य की रचना भी यहीं की थी। ‘त्रोटकाचार्य’ आदि शंकराचार्य के शिष्य थे, जो उनके जाने के बाद प्रथम आचार्य हुए। निकट स्थित महादेव के एक मंदिर में अखंड ज्योति जल रही थी, जहाँ सभी भक्तगण प्रसाद की जगह केवल तेल चढ़ाते हैं। इसके बाद नरसिंह भगवान के विशाल मंदिर में गये।मान्यता है कि नरसिंह भगवान ने यहाँ योग किया और शांत भाव को प्राप्त हुए। सदियों पूर्व कर्नाटक से आये डिमरी ब्राह्मण इस मंदिर के पुजारी हैं।इसके प्रांगण में हनुमान, गौरी शंकर, गणेश, देवी और सूर्य को समर्पित कई अन्य मंदिर भी हैं। पुजारी लक्ष्मी नारायण जी ने कहा, आगामी नवरात्र में वे हमारे लिए भी पूजा करेंगे। उन्होंने फ़ोन नंबर ले लिए है, मठ में होने वाले कार्यक्रमों की जानकारी भी देते रहेंगे। हम वहाँ दर्शन कर ही रहे थे कि पुत्र का फ़ोन भी आ गया था, वीडियो कॉल के माध्यम से उसे भी मठ के दर्शन करा दिये।


उसके बाद निकट के बाज़ार से कुछ स्थानीय दालें तथा सब्ज़ियों के बीज ख़रीदे।दोपहर का भोजन वापस आकर किया। शाम को होटल के पीछे वाली सड़क से नीचे उतरते हुए नदी के कुछ चित्र लिए।मौसम ख़राब होने के कारण पिछले चार दिनों से बद्रीनाथ व अन्य पर्यटन स्थल जाने का मार्ग बंद है।शाम को ज्ञात हुआ, आज इसी रिज़ौर्ट में बद्रीनाथ से एक समूह लौटा है, शायद कल हम भी जा सकेंगे। 



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