शुक्रवार, फ़रवरी 3

चाँद झलकता है


चाँद झलकता है 

जब सो जाती है झील 
नहीं उठती कोई भी लहर 
उसके आंचल पर 
तब चाँद झलकता है 
बिखर जाती है ज्योत्स्ना 
और भर जाती सुवास 
पर हल्की सी लहर भी 
तोड़ देती है प्रतिबिम्ब  
बिखर जाती चांदनी 
खो ही जाती है 
उथल-पुथल में 
थम जाए पल भर मन 
कुछ भी  न आने दें 
मध्य में अपने और उसके 
फिर होगा मिलन 
थिर होगा जब अंतर का दर्पण  !

6 टिप्‍पणियां:

  1. मन की स्थिरता का प्रयास ही तो पहला कदम है उससे मिलन का...बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...आभार

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  2. प्रयास तो है कि थिर हो दर्पण पर .
    ..

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    1. प्रयास जारी रहे तो एक न दिन मिलन होकर ही रहेगा..स्वागत व आभार अमृताजी !

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