अनकहे गीत बड़े प्यारे हैं 
जो न छंद बद्ध हुए
बिल्कुल कुंआरे हैं 
तिरते अभी गगन में  
गीत बड़े प्यारे हैं !
जो न अभी हुए मुखर 
अर्थ कौन धारे हैं 
ले चलें जाने किधर 
पार नद उतारे हैं !
पानियों में संवरें 
पी रहे गंध माटी 
जी रहे ताप सहते 
मौन रूप धारे हैं ! 
गीत गाँव व्यथा कहें 
भूली सी कथा कहें 
गूंजते, गुनगुनाते 
अंतर संवारे हैं ! 
गीत जो हृदय छू लें 
पल में उर पीर कहें
ले चलें अपने परों 
दूर से पुकारें हैं !

 
आपके गीतों में ग्राम्य जीवन का सुन्दर दर्शन समाया हुआ रहता है। इन गीतों की अनुभूतियां निश्चय ही आज की प्रतीत नहीं होतीं। ये पुरातन सुन्दर ग्रामीण जीवन के साहित्य का अत्यंत सुखद वर्णन है।
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्दों में कविता की प्रशंसा करने के लिए आभार विकेश जी
हटाएंहृदय को छूती बहुत खूबसूरत रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ,मनमोहक गीत.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और मनमोहक रचना ।
जवाब देंहटाएंइतनी सारी सकारात्मक प्रतिक्रियाओं के लिए आभार मीना जी
हटाएंबहुत सुन्दर गीत ... सीधा सरल, मन, उमंगें और सकारात्मकता लिए ...सोंधी खुशबू लिए ...
जवाब देंहटाएंसुस्वागतम व आभार दिगम्बर जी !
हटाएं