एक कलश मस्ती का जैसे
बरस रहा सावन मधु
बन कर
या मदिर चाँदनी
मृगांक की,
एक कलश मस्ती का
जैसे
भर सुवास किसी
मृदु छंद की !
जीवन बँटता ही
जाता है
अमृत का एक स्रोत
बह रहा,
लहराता सागर
ज्यों नाचे
अंतर में नव राग
उमगता !
टूट गयी जब नींद
हृदय की
गाठें खुल-खुल कर
बिखरी हैं,
एक अजाने सुर को
भर कर
चहूँ दिशाएं भी
निखरी हैं !
भीतर बाहर एक वही है
एक ललक ही प्रतिपल
महके,
धरती अंबर एक सदा हैं
मुस्काता नभ वसुधा लहके !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-09-2017) को सुबह से ही मगर घरपर, बड़ी सी भीड़ है घेरी-चर्चामंच 2732 पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस : काका हाथरसी, श्रीकांत शर्मा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
हटाएंवाह ... जीवन जैसे अपने अप में एक दर्शन है ... हर छंद मुक्त पवन सा बहता हुआ ... जीवन रहस्य को पाता हुआ ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार दिगम्बर जी !
हटाएंwahh!! muskata nav vasudha lahke. Atyant Sundar
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार विकेश जी !
हटाएंनमस्ते, आपकी यह रचना "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 21 -09 -2017 को प्रकाशनार्थ 797 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।
जवाब देंहटाएंनमस्ते, बहुत बहुत आभार रवीन्द्र जी !
हटाएंसुन्दर ,मनभावन ,लाजवाब प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार सुधा जी !
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