मंगलवार, दिसंबर 19

जो कहा नहीं पर सुना गया

जो कहा नहीं पर सुना गया


शब्दों में ढाल न पाएँगे
जो जाम पिलाये मस्ती के,
कुदरत बिन बोले भर देती
मृदु मौन झर रहा अम्बर से !

मदमस्त हुआ आलम सारा
कुछ गमक उठी कुछ महक जगी,
तितली भँवरों के झुंड बढ़े
कुसुमों ने पलकें क्या खोलीं !

नयनों से कोई झाँक रहा
जाने किस गहरे अन्तस् से,
कानों में पड़ी पुकार मधुर
इक अनजानी सी मंजिल से !

जो कहा नहीं पर सुना गया
इक गीत गूँजता कण-कण में
जो छिपा नहीं पर प्रकट न हो
बाँधें कोई उस बंधन में !

वह पल होते अनमोल यहाँ
खो जाये मन जब खुद ही में,
मिटकर पा लेता कुछ ऐसा
झलके जीवन की गरिमा में !

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