शिवलिंग और शालिग्राम
सुडौल हैं दोनों
नहीं है कोई नुकीलापन किसी भी कोने में
कोना ही नहीं उनमें
नदी के तल में रहते-रहते जब
दो पत्थर आपस में टकराते हो जाते हैं चिकने
खो जाता है हर खुरदुरापन
तब बन जाते हैं वे छोटे-छोटे शिवलिंग
बरसों तक साथ रहते जन भी
जब नहीं चुभते एक दूसरे को
नहीं कुरेदते एक-दूसरे की कमियों को
खो जाता है अहम का नुकीलापन
और झर जाती हैं कटंकों की बेल
जो अपने इर्दगिर्द उगाई थी
कभी आत्मसम्मान कभी पहचान के नाम पर
तो वे भी बन जाते हैं सुडौल एक दूजे के लिए
आराधना के पात्र
उमर के अंतिम पड़ाव तक आते-आते
मन से खो जाए हर नुकीलापन
तो आत्मा का शिवलिंग
भीतर प्रकट हो ही जाता है !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर। भावों की गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-3-21) को "सीमित है संसार में, पानी का भण्डार" (चर्चा अंक 4014) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
उमर के अंतिम पड़ाव तक आते-आते
जवाब देंहटाएंमन से खो जाए हर नुकीलापन
तो आत्मा का शिवलिंग
भीतर प्रकट हो ही जाता है !
अहा !क्या बात कह दी है अनीता जी ... गज़ब .... बस ये नुकीलापन ही तो कह्तं करना चाहिए ...
आध्यात्मिक भावों से भरी,एवम मनुष्य को प्रेरणा देती अनुपम रचना ।
जवाब देंहटाएंकभी आत्मसम्मान कभी पहचान के नाम पर
जवाब देंहटाएंतो वे भी बन जाते हैं सुडौल एक दूजे के लिए
आराधना के पात्र
उमर के अंतिम पड़ाव तक आते-आते
मन से खो जाए हर नुकीलापन
तो आत्मा का शिवलिंग
भीतर प्रकट हो ही जाता है !
लाजवाब रचना
जीवन की पूर्णता को प्राप्त करने के लिए आत्मा के शिवलिंग का प्रकटीकरण ही एकमात्र ध्येय होना चाहिए । मन का सारा नुकीलापन को तो घिस -घिसकर समाप्त होना ही है । पर ये जाग कर हो तो क्या कहना । हृदय को झंकृत कर दिया है आपने । हार्दिक आभार एवं प्रणाम स्वीकार करें ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
अनूठी उपमा का प्रयोग किया है आपने एक जीवन-सत्य एवं जीवन-दर्शन की व्याख्या करने हेतु ।
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधीजनों का कविता के मर्म तक पहुँचकर सुंदर भाव प्रकट करने हेतु हृदय से आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति। रचना में छिपा जीवन दर्शन पसंद आया। आपको बहुत-बहुत बधाई। सादर।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने बरसों तक साथ रहते जन भी
जवाब देंहटाएंजब नहीं चुभते एक दूसरे को
नहीं कुरेदते एक-दूसरे की कमियों को
खो जाता है अहम का नुकीलापन
साथ रहते रहते दो अजनवी भी एक हो जाते हैं भिज्ञता समभाव लाती है आत्मसम्मान और पहचान के नुकीलेपन को घिस देती है...
बहुत सुन्दर सार्थक सृजन।
उमर के अंतिम पड़ाव तक आते-आते
जवाब देंहटाएंमन से खो जाए हर नुकीलापन
तो आत्मा का शिवलिंग
भीतर प्रकट हो ही जाता है !
बहुत संदर अभिव्यक्ति!!!!!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबरसों तक साथ रहते जन भी
जवाब देंहटाएंजब नहीं चुभते एक दूसरे को
नहीं कुरेदते एक-दूसरे की कमियों को
खो जाता है अहम का नुकीलापन
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति...
आप सभी विद्वजनों का हृदय से स्वागत व आभार !
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