मंगलवार, मार्च 9

नीलगगन सी विस्तृत काया

नीलगगन सी विस्तृत काया 


एक शून्य है सबके भीतर

एक शून्य चहुँ ओर व्यापता, 

जाग गया जो भी पहले में 

दूजे में भी रहे जागता !


शून्य नहीं वह अंधकार मय 

ज्योतिर्मयी प्रभा से मंडित, 

पूर्ण सजग हो रहता योगी 

निज आभा में होकर प्रमुदित !


 उसी शून्य का नाम सुंदरम्

प्रेम-ज्ञान की जो मूरत है, 

परम अनादि-अनंत तत्व शिव 

अति मनहर धारे सूरत है !


रखता तीन गुणों को वश में  

मन अल्प, चंद्रमा लघु धारे, 

मेधा बहती गंगधार में 

भस्म काया पर, सर्प धारे !


नीलगगन सी विस्तृत काया 

व्यापक धरती-अंतरिक्ष में,  

शिव की महिमा शिव ही जाने 

शक्ति है अर्धांग  में जिसको !


 

19 टिप्‍पणियां:

  1. समाधि व साधना प्रतीक शिव।
    उम्दा रचना

    नई रचना

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 10 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. शून्य ही आदि है और शून्य ही अंत।

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  4. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना..आध्यात्मिक एवम चिंतन से परिपूर्ण..

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  5. शून्य कितना विस्तृत । और हम शून्य में भटकते रहते ।
    सुंदर रचना।

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  6. शून्य में कितना कुछ समाहित है देखनेवाली आँख ही उसे देख पाती है.

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  7. नीलगगन सी विस्तृत काया
    व्यापक धरती-अंतरिक्ष में,
    शिव की महिमा शिव ही जाने
    शक्ति है अर्धांग में जिसको !
    ----
    अति सुंदर सारगर्भित रचना अनीता जी।
    आपकी लेखनी से निसृत अलौकिक आभा बेहद पवित्र है।
    सादर।

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