अब समेटें धार मन की
खेलता है रास कान्हा
आज भी राधा के संग,
प्रीत की पिचकारियों से
डाल रहा रात-दिन रंग !
अब समेटें धार मन की
जगत में जो बह रही है,
कर समर्पित फिर उसी के
चरण कमलों में बहा दे !
हृदय राधा बन थिरक ले
बने गोपी भावनाएं,
उस कन्हैया के वचन ही
टेरते हों बंसी बने !
होली मिलन शुभ घटेगा
तृप्त होगी आस उर की,
नयन भर कर देख लें फिर
अनुपम झलक साँवरे की !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 28 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंहोली की अग्रिम शुभकामनाएँ🙏
आपको भी होली की शुभकामनायें !
हटाएंदिव्य प्रणय का रंग बिखेरती रचना मुग्ध करती है। शुभकामनाओं सह आदरणीया अनीता दी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ मैम
आपको भी होली मुबारक !
हटाएंअनुपम भाव से सिक्त कृति के लिए हार्दिक बधाई एवं होली की शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अमृता जी, होली की शुभकामनायें !
हटाएंहृदय राधा बन थिरक ले
जवाब देंहटाएंबने गोपी भावनाएं,
उस कन्हैया के वचन ही
टेरते हों बंसी बने !
बहुत सुन्दर रचना...शुभकामनाएँ
अब समेटें धार मन की
जवाब देंहटाएंजगत में जो बह रही है,
कर समर्पित फिर उसी के
चरण कमलों में बहा दे !
अहा कितनी सुंदर रचना । आनंद आया
शुभकामनाएँ
उषा जी व संगीता जी, स्वागत व होली की शुभकामनायें !
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