विजयादशमी
आज विजयादशमी है !
आज भी तो रावण के पुतले जलेंगे,
क्या वर्ष भर हम रावण से मुक्त रहेंगे ?
नहीं,...तब तक नहीं
जब तक, दस इन्द्रियों वाले मानव का
विवेक निर्वासित किया जाता रहेगा,
और अहंकार
बुद्धि हर ले जाता रहेगा,
अब सीता राम का मिलन होता ही नहीं
यदि होता तो राष्ट्र आतंक के साये में न जीते
विकास के नाम पर रसायन युक्त अन्न
और हवा के नाम पर जहर न पीते
न होती विषमताएं समाज में
आखिर कब घटेगा दशहरा हमारे भीतर?
कब ?
तभी न, जब
विवेक का साथ देगा
वैराग्य
दोनों प्राण के जरिये
बुद्धि को मुक्त करेंगे
तब होगा रामराज्य
जर्जर हो यह तन, बुझ जाये मन
उसके पहले
जला डालें अपने हाथों
अहंकार के रावण, मोह के कुम्भकर्ण
लोभ के मेघनाथ भी
उसी दिन होगी सच्ची विजयादशमी !
जला डालें। आज का दिन इसीलिए है। सार्थक प्रेरणा।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१६ -१०-२०२१) को
'मौन मधु हो जाए'(चर्चा अंक-४२१९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार!
हटाएंक्या वर्ष भर हम रावण से मुक्त रहेंगे ?
जवाब देंहटाएंनहीं,...तब तक नहीं
जब तक, दस इन्द्रियों वाले मानव का
विवेक निर्वासित किया जाता रहेगा,
और अहंकार!
बुद्धि हर ले जाता रहेगा,
महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती हुई बहुत ही उम्दा रचना!
स्वागत व आभार!
हटाएंस्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएं