जब नया साल आने को है
हर भोर नयी हर दिवस नया
हर साँझ नयी हर चाँद नया,
हर अनुभुव भी पृथक पूर्व से
हर स्वप्न लिए संदेश नया !
हम बंधे हुए इक लीक चलें
प्रतिबिम्ब कैद ज्यों दर्पण में,
समय चक्र आगे बढ़ता पर
ठिठक वहीं रह जाते तकते !
नयी चुनौती, नव उम्मीदें
करें सामना नई ललक से,
बीता कल जो कहीं खो गया
आने वाला उसे सराहें !
जब नया साल आने को है
नव आशा ज्योति जगे उर में,
जो सीख मिली धारें, मन को
खोलें हर दिन नव चाबी से !
नया वर्ष नयी उम्मीद लेकर आता है, बुरा समय जल्दी बीत जाय सभी को यही चाहत रहती है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
स्वागत व आभार कविता जी !
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-12-2020) को "शीतल-शीतल भोर है, शीतल ही है शाम" (चर्चा अंक-3924) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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उम्मीद और आशा का आह्वान करती हुयी सुन्दर रचना ... क्षमा चाहता हूँ लम्बे समय के बाद आना हुआ ... प्रयास रह्र्गा नियमित हो सकूं ...
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 23 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्मीद जगाती बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंजादुई कुंजी दिखाया है आपने बस हर नये दिन को खोलना आ जाए । अति सुन्दर भाव ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंवाह नव आशा की आह्वान करती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंनयी मदभरी सुबह नवल आशाओं से सुसज्जित होगी,नव वर्ष की हमारी यही कामना होगी
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंजब नया साल आने को है
जवाब देंहटाएंनव आशा ज्योति जगे उर में,
जो सीख मिली धारें, मन को
खोलें हर दिन नव चाबी से !
"परमात्मा आने वाले समय को शुभ करें" नई उत्साह और ऊर्जा देती सृजन
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति। आपको बधाई और शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधीजनों का हृदय से स्वागत व आभार !
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