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सोमवार, जुलाई 19

लुटाता सुवास रंग

लुटाता सुवास रंग 

तृप्ति की शाल ओढ़े 
खिलता है हरसिंगार, 
पाया जो जीवन से 
बाँट देता निर्विकार !

कंपित ना हुआ गात 
घाम, मेह, शीत आए, 
तपा, भीगा, झूमता 
फूलों में मुस्कुराए !

जीवित है काफ़ी है 
नहीं कोई माँग और, 
लुटाता सुवास रंग 
रात खिलता झरे भोर !

एक उसी जगह खड़ा 
राही थम जाते सभी, 
देखते निगाहें भर 
सुवास मधुर जाएँ पी !

जीवन भी ऐसा ही 
है भीतर समान सदा,
देता रहे अनगिनत 
अहर्निश वरदान प्रदा !