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बुधवार, फ़रवरी 22

एक छुअन है अनजानी सी



एक छुअन है अनजानी सी 


शब्दों में कैसे ढल पाए 
मधुर रागिनी तू जो गाए,
होने से बनने के मध्य 
गागर दूर छिटक ही जाए !

एक छुअन है अनजानी सी 
प्राणों को जो सहला जाती,
एक मिलन है अति अनूठा 
हर लेता हर व्यथा विरह की !

मदिर चांदनी टप-टप टपके
कोमलतम है उसका गात,
 तके श्याम बाट राधा की 
 भूली कैसे वह यह बात !

जिस पल तकती वही वही है 
मौन रचे जाता है गीत,
ज्यों प्रकाश ही ओढ़ आवरण 
बहता चहूँ  दिशि बनकर प्रीत !

जाने कितने करे इशारे 
अपनी ओर लिए जाता है,
पल भर काल न तिल भर दूरी 
अपनी खबर दिए जाता है !