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बुधवार, जुलाई 31

जुड़ें रहें जो मूल से

जुड़ें रहें जो मूल से



उस दिन एक
वृक्ष को बतियाते देखा
वही गीता वाला  
पीपल का वह विशाल वृक्ष !
जिसका मूल है ऊपर, शाखाएँ नीचें
 तना वृद्ध था, मुखिया जो
 ठहरा घर का !

कुछ शाखाएँ पहली पीढ़ी
उम्र हो चली, सो संयत हैं
नई-नई अभी कोमल हैं
 नाचा करतीं हर झोंके संग
धीरे-धीरे ही सीखोगी, कहा वृद्ध ने
 जब मौसम की मार सहोगी
कभी धूप, बौछारें जल की
सूनी शामें जब पतझड़ की
तब जानोगी, क्या है जीवन ?
पत्ता-पत्ता छिन जायेगा
गहन शीत में तन काँपेगा,

खिलखिल हँस दी कोमल टहनी
 जब तक साथ तुम्हारा बाबा
हम जीवित है
तुमसे पोषण मिलता
हमको, सब सह लेंगे
किन्तु हुईं जो पृथक जानना
मिटना ही उनकी नियति है
जुड़ा रहा जो मूल से उसको
कैसे कोई हिला सकेगा
अपना योगदान देकर वह जग को  
 हँसते-हँसते विदा कहेगा....!