श्वास-श्वास में सिमरन हो जब
श्वासों में मत भरें सिसकियाँ
हैं सीमित उपहार किसी का,
दीर्घ, अकंपित अविरत गति हो
इनमें कोई राज है छुपा !
श्वास-श्वास में सिमरन हो जब
वाणी में इक दिन छलकेगा,
मन को बाँधे ऐसी डोरी
श्वासों से ही मधु बरसेगा !
श्वासों का आयाम बढ़े जब
सारा विश्व समाता इनमें,
एक ऊर्जा है अनंत जो
ज्योति वह प्रदाता जिसमें !
श्वासों की माला पहनी है
भरे सुगंधि मधुराधिपति की,
इनकी गहराई में जाकर
द्युति निहारें हृदय मोती की !