श्वास-श्वास में सिमरन हो जब
श्वासों में मत भरें सिसकियाँ
हैं सीमित उपहार किसी का,
दीर्घ, अकंपित अविरत गति हो
इनमें कोई राज है छुपा !
श्वास-श्वास में सिमरन हो जब
वाणी में इक दिन छलकेगा,
मन को बाँधे ऐसी डोरी
श्वासों से ही मधु बरसेगा !
श्वासों का आयाम बढ़े जब
सारा विश्व समाता इनमें,
एक ऊर्जा है अनंत जो
ज्योति वह प्रदाता जिसमें !
श्वासों की माला पहनी है
भरे सुगंधि मधुराधिपति की,
इनकी गहराई में जाकर
द्युति निहारें हृदय मोती की !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 20 अप्रैल 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बहुत आभार रवींद्र जी!
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏
स्वागत व आभार सुधा जी !
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