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गुरुवार, सितंबर 19

चलो, अब घर चलें


चलो, अब घर चलें


बहुत घूमे बहुत भटके
कहाँ-कहाँ नहीं अटके,
 बहुत रचाए खेल-तमाशे
बहुत कमाए तोले माशे !

अब तो यहाँ से टलें
चलो अब घर चलें !

आये थे चार दिन को
 यहीं धूनी रमाई,
 यहीं के हो रहे हैं
पास पूंजी गंवाई !

यादें अब उसकी खलें
चलो अब घर चलें !

कुछ नहीं पास तो क्या
 वहाँ भरपूर है आकर
पिता का प्यार माँ का नेह  
बुलाते प्रीत के आखर

आये तो थे अच्छे भले
चलो अब घर चलें !