चलो, अब घर चलें
बहुत घूमे बहुत भटके
कहाँ-कहाँ नहीं अटके,
बहुत रचाए खेल-तमाशे
बहुत कमाए तोले माशे !
अब तो यहाँ से टलें
चलो अब घर चलें !
आये थे चार दिन को
यहीं धूनी रमाई,
यहीं के हो रहे हैं
पास पूंजी गंवाई !
यादें अब उसकी खलें
चलो अब घर चलें !
कुछ नहीं पास तो क्या
वहाँ भरपूर है आकर
पिता का प्यार माँ का नेह
बुलाते प्रीत के आखर
आये तो थे अच्छे भले
चलो अब घर चलें !