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सोमवार, अगस्त 26

मन

मन 


मन कहानी पर पलता है 

क्षण-प्रतिक्षण नयी-नयी बुनता है 

अपनी रास न आये तो

औरों की लेकर चटखारे सुनता है !


अनादि काल से सुनते आ रहे हैं 

बच्चे कहानियाँ 

मन उनसे ही पोषित होता 

कल्पना के नगर गढ़ता है 

खो जाता भूल-भुलैयों  में 

सपनों में जगता है !


मन कहानियों का प्रेमी है 

गढ़ लेता है नायक स्वयं ही 

खलनायक भी चुनता है 

फिर क्या हुआ ?

यही चलाता है उसे 

सच से घबराता है !


ख़ुद ही सवाल उठाता 

जवाब भी बन जाता है 

मन में चलता है नाटक 

परदा कभी न गिरता है !


शब्दों का घेरा इक 

इर्द-गिर्द डाल लेता 

उस पार क्या है 

जान नहीं पाता 

अपने ही महलों में 

रात-दिन विचरता है 

मन कहानी पर पलता है !


बुधवार, मई 22

राजा

राजा 


अनंत ब्रह्मांड में छोड़ दिये गये हैं 

जिसके द्वारा हम 

दिशाहीन से, उसके लिये 

हित अपना साधना है 

जहाँ लगता है 

पूरी आज़ादी है 

लेकिन एक सीमा में 

ऐसे में वही एक आश्रय है 

किसी एक को तो आगे आना होगा 

एक सम्राट की तरह 

रास्ता दिखाना होगा 

गउएँ भी हों तो 

चरवाहे की ज़रूरत है 

एक नेता जो दिशा दे 

ट्रैफ़िक चलाता सिपाही जैसे 

 कक्षा चलाता है जैसे एक शिक्षक

देश चला सकता वही

 बन सके जो रक्षक  

उसे आशीर्वचन और शुभकामनाएँ दें 

सबल हों, बल उसका बनें 

 काम हर देशवासी करे 

उसकी शक्ति बने 

तो सभी हैं सुरक्षित 

जैसे सभी अंग हों स्वस्थ 

तो बनता है व्यक्ति सबल

जो राष्ट्र को चलाता है 

आगे ले जाता है 

नई राह दिखाता है 

   दिशा देता है

जीवन ऊर्जा को

वह नायक है

उसका स्वार्थ यही है कि 

वह हमारे स्वार्थों की पूर्ति में 

सहायक है !