क्यों रहे मन घाट सूना
पकड़ छोड़ें, जकड़ छोड़ें
भीत सारी आज तोड़ें,
बन्द है जो निर्झरी सी
प्रीत की वह धार छोड़ें !
स्रोत जिसका कहाँ जाने
कैद है दिल की गुफा में,
कोई बिन भीगे रहे न
आज तो हर बाँध तोड़ें !
रंग कुदरत ने बिखेरे
क्यों रहे मन घाट सूना,
बह रही जब मदिर ख़ुशबू
बहा आँसूं हाथ जोड़ें !
जो मिले, भीगे, तरल हो
टूट जाये हर कगार,
पिघल जाये दिल यह पाहन
भेद का हर रूप छोड़ें !