एक पुहुप सा खिला है कौन
एक निहार बूँद सी पल भर
किसने देह धरी,
एक लहर सागर में लेकर
किसका नाम चढ़ी !
बिखरी बूँद लहर डूब गयी
पल भर दर्श दिखा,
जैसे घने बादलों में इक
चपला दीप जला !
एक पुहुप सा खिला है कौन
जो चुपचाप झरे,
एक कूक कोकिल की गूँजे
इक निश्वास भरे !
एक राज जो खुला न अब तक
कितने वेद पढ़े,
किसी अनाम की खातिर कौन
पग-पग नमन करे !