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सोमवार, जुलाई 11

एक कंकर चाहतों का

एक कंकर चाहतों का 


टुकड़ा-टुकड़ा जोड़ा मन 

  बुत इक अद्भुत बना लिया, 

 कभी सोया जागा कभी 

कुछ स्वप्नों से सजा लिया !


दर्पण झील हुआ जब थिर  

था चाँद उसमें झाँकता ,

एक कंकर चाहतों का 

तिलिस्म पल में मिटा गया !


जो था नहीं, है न होगा 

 उसे सँवारा करता  जग,

 छुपा नजर के पीछे जो

 खुद को उससे बचा गया  !


राज क्या उनकी ख़ुशी का 

राहबर बन जो मिले थे, 

मिले सब यह रोग छूटा 

जो पाया गुनगुना लिया !