एक कंकर चाहतों का
टुकड़ा-टुकड़ा जोड़ा मन
बुत इक अद्भुत बना लिया,
कभी सोया जागा कभी
कुछ स्वप्नों से सजा लिया !
दर्पण झील हुआ जब थिर
था चाँद उसमें झाँकता ,
एक कंकर चाहतों का
तिलिस्म पल में मिटा गया !
जो था नहीं, है न होगा
उसे सँवारा करता जग,
छुपा नजर के पीछे जो
खुद को उससे बचा गया !
राज क्या उनकी ख़ुशी का
राहबर बन जो मिले थे,
मिले सब यह रोग छूटा
जो पाया गुनगुना लिया !