नव बसंत आया
सरसों फूली कूकी
कोयल
पंछी चहके कुदरत
चंचल,
नवल राग गाया
जीवन ने
नव बसंत लाया कोलाहल !
भँवरे जैसे तम से
जागे
फूल-फूल से मिलने
भागे,
तितली दल नव वसन
धरे है
मधुमास कहता बढ़ो
आगे !
आम्र मंजरी बौराई
सी
निज सुरभि कलश का
पट खोले,
रात-बिरात का होश
न रखे
जी चाहे जब कोकिल
बोले !
कुसुमों में भी
लगी होड़ है
धारे नूतन रूप
विकसते,
हरी-भरी बगिया
में जैसे
कण-कण भू का सजा
हुलसते !
किसके आमन्त्रण
पर आखिर
रंगों का अंबार
लगा है,
पवन बसंती मदमाती
सी
मनहर बन्दनवार
सजा है !
शीत उठाये डेरा
डंडा
चहूँ ओर भर गया
उल्लास,
नई चेतना भरने
आया
समाई जीवन में नव
आस !