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मंगलवार, फ़रवरी 5

नव बसंत आया



नव बसंत आया

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सरसों फूली कूकी कोयल
पंछी चहके कुदरत चंचल,
नवल राग गाया जीवन ने
नव बसंत लाया कोलाहल !

भँवरे जैसे तम से जागे
फूल-फूल से मिलने भागे,
तितली दल नव वसन धरे है
मधुमास कहता बढ़ो आगे !

आम्र मंजरी बौराई सी
निज सुरभि कलश का पट खोले,
रात-बिरात का होश न रखे
जी चाहे जब कोकिल बोले !

कुसुमों में भी लगी होड़ है
धारे नूतन रूप विकसते,
हरी-भरी बगिया में जैसे
कण-कण भू का सजा हुलसते !

किसके आमन्त्रण पर आखिर
रंगों का अंबार लगा है,
पवन बसंती मदमाती सी
मनहर बन्दनवार सजा है !

शीत उठाये डेरा डंडा
चहूँ ओर भर गया उल्लास,
नई चेतना भरने आया
समाई जीवन में नव आस !