मधुमास लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मधुमास लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, दिसंबर 3

ऊँघता मधुमास भीतर

ऊँघता मधुमास भीतर 

अनसुनी कब तक करोगे 

टेर वह दिन-रात देता,

ऊँघता मधुमास भीतर 

कब खिलेगा बाट तकता !


विकट पाहन कन्दरा में 

सरिता सुखद इक बह रही, 

तोड़ सारे बाँध झूठे 

राह देनी है उसे भी !


एक है कैलाश अनुपम 

प्रकृति पावन स्रोत भी है,  

कुम्भ एक अमृत सरीखा 

क्षीर सागर भी वहीं है !


दृष्टि निर्मल सूक्ष्म जिसकी  

राह में कोई न आये, 

बेध हर बाधा मिलन की 

सत्य में टिकना सिखाये !

 

मंगलवार, मार्च 19

अगन होलिका की है पावन




अगन होलिका की है पावन

बासंती मौसम बौराया
मन मदमस्त हुआ मुस्काया,
फागुन पवन बही है जबसे
अंतर में उल्लास समाया !

रंगों ने फिर दिया निमंत्रण
मुक्त हो रहो तोड़ो बंधन,
जल जाएँ सब क्लेश हृदय के
अगन होलिका की है पावन !

जली होलिका जैसे उस दिन
जलें सभी संशय हर उर के,
शेष रहे प्रहलाद खुशी का
मिलन घटे उससे जी भर के !

उड़े गुलाल, अबीर फिजां में
जैसे हल्का मन उड़ जाये,
रंगों के जरिये ही जाकर
प्रियतम का संदेशा लाए !

सीमित हैं मानव के रंग
पर अनंत मधुमास का यौवन,
थक कर थम जाता है उत्सव
चलता रहता उसका नर्तन !


मंगलवार, फ़रवरी 5

नव बसंत आया



नव बसंत आया

Image result for सरसों का खेत
सरसों फूली कूकी कोयल
पंछी चहके कुदरत चंचल,
नवल राग गाया जीवन ने
नव बसंत लाया कोलाहल !

भँवरे जैसे तम से जागे
फूल-फूल से मिलने भागे,
तितली दल नव वसन धरे है
मधुमास कहता बढ़ो आगे !

आम्र मंजरी बौराई सी
निज सुरभि कलश का पट खोले,
रात-बिरात का होश न रखे
जी चाहे जब कोकिल बोले !

कुसुमों में भी लगी होड़ है
धारे नूतन रूप विकसते,
हरी-भरी बगिया में जैसे
कण-कण भू का सजा हुलसते !

किसके आमन्त्रण पर आखिर
रंगों का अंबार लगा है,
पवन बसंती मदमाती सी
मनहर बन्दनवार सजा है !

शीत उठाये डेरा डंडा
चहूँ ओर भर गया उल्लास,
नई चेतना भरने आया
समाई जीवन में नव आस !


मंगलवार, मार्च 17

आहट भर पाकर मधु रुत की


आहट भर पाकर मधु रुत की



बासंती चुनरिया ओढ़े
हौले हौले से धरती पग,
सरकाती पल भर ही घूँघट
विस्मय से भर जाता है जग !

आहट भर पाकर मधु रुत की
कवि मुग्ध हुए रचते दोहे,
मधुबन की अनुपम सौगातें
आखिर किसका न मन मोहे !

नित नूतन भाव उठें उर में
नव पल्लव गीत यही गाते,
तज अनचाहा फिर-फिर जन्में
नव कोंपल यही सिखा जाते !

इक धनक गूँजती कण-कण में
गीतों की जैसे फसल उगे,
मधुमास मदिर पैमाने भर
मुदित हुआ हर भोर जगे !