ऊँघता मधुमास भीतर
अनसुनी कब तक करोगे
टेर वह दिन-रात देता,
ऊँघता मधुमास भीतर
कब खिलेगा बाट तकता !
विकट पाहन कन्दरा में
सरिता सुखद इक बह रही,
तोड़ सारे बाँध झूठे
राह देनी है उसे भी !
एक है कैलाश अनुपम
प्रकृति पावन स्रोत भी है,
कुम्भ एक अमृत सरीखा
क्षीर सागर भी वहीं है !
दृष्टि निर्मल सूक्ष्म जिसकी
राह में कोई न आये,
बेध हर बाधा मिलन की
सत्य में टिकना सिखाये !