एक चिंगारी असल की
दर्द भीतर सालता जो
प्रेम बनकर वह बहेगा,
भूल चुभती शूल बनकर
पंक से सरसिज खिलेगा !
खोल दो हृदय को अपने
जब साथ है रहबर खड़ा,
लक्ष्य अपना एक हो तो
विष यहाँ अमीय बनेगा !
परख लो हर बात अपनी
बनी हो चाहे बिगड़ती,
सत्य का दामन न छोड़ा
झूठ फिर कब तक टिकेगा !
सौ भ्रमों से ढका हो मन
ज़िंदगी आसान लगती,
एक चिंगारी असल की
खेल फिर कब तक टिकेगा !
हुआ सच से सामना जब
नहीं कोई ठौर मिलता,
नींद स्वप्नों से भरी हो
जागना इक दिन पड़ेगा !