विष लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
विष लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, जुलाई 22

एक चिंगारी असल की

एक चिंगारी असल की 

दर्द भीतर सालता जो 

प्रेम बनकर वह बहेगा,  

भूल चुभती शूल बनकर 

पंक से सरसिज खिलेगा !


खोल दो हृदय को अपने 

जब साथ है रहबर खड़ा, 

लक्ष्य अपना एक हो तो 

विष  यहाँ अमीय बनेगा !


परख लो हर बात अपनी 

बनी हो चाहे बिगड़ती,  

सत्य का दामन न छोड़ा 

झूठ फिर कब तक टिकेगा !


सौ भ्रमों से ढका हो मन 

ज़िंदगी आसान लगती, 

एक चिंगारी असल की 

खेल फिर कब तक टिकेगा !


हुआ सच से सामना जब 

नहीं कोई ठौर मिलता, 

नींद स्वप्नों से भरी हो 

जागना इक दिन पड़ेगा !