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बुधवार, अक्टूबर 19

सत्य

सत्य 


सत्य अमोघ है 

आग है 

शीतल जलाभिषेक है 

इससे कोई बच नहीं  सकता 

सत्य हुए बिना कोई चैन से जी नहीं सकता 

इसका एक कण झूठ के हजार पर्वतों से ज्यादा बलशाली है 

सत्य पीछा नहीं छोड़ता 

जब तक आप उस पर चलना आरम्भ न कर दें 

यह अंतर का उल्लास है 

वाणी की मिठास है 

और आपसी विश्वास है

सत्य प्रेम की गर्माहट है 

दिल के रिश्तों की नर्माहट है 

सत्य का दामन थाम लें तो वहीं ले जाता है 

हमें अपने आप से मिलाता है 

सत्य नारायण है 

अति पावन है 

अनंत युगों से उसका ही आराधन है 

वह शिव का नर्तन है 

स्नेह का वर्तन है 

आओ उसके पथ पर चलें 

पल पल उससे ही मिलें !!


शुक्रवार, अगस्त 28

राखी का उत्सव



राखी का उत्सव

सावन की पूनम जब आती है
साथ चला आता है
बचपन की यादों का एक हुजूम
नन्हे हाथों में बंधी
सुनहरी चमकदार राखियाँ
और मिठाई से भरे मुँह
उपहार पाकर सजल हुए नेत्र
और मध्य में बहती स्नेह की अविरत धारा
एक बार फिर आया है राखी का त्योहार
लेकर शुभभावनाओं का अम्बार
खुशियाँ भरें आपके जीवन में ये नेह भरे धागे
जीवन का हर क्षण सौभाग्य लिए जागे 

गुरुवार, मई 3

वह


वह  

जैसे माँ करती है स्वच्छ
दुधमुहें बच्चे के मैले वस्त्र
स्नेह भरे अंतर में..
वह करता है दूर हमारे मन से
मैल की परत दर परत..
जब ईश्वर निर्विकार तकता रहता है भीतर
वह लेता है जिम्मा गर्द हटाने का
जो हमारे भीतर है
वह जानता है मन की गहराई में छिपे
संशयों के सर्पों को
वह जानता है अचेतन की गुफाओं में
 हैं कुछ दंश देने वाले जीव
बल देता है शिष्य को
कि वह झाड़ बुहार सके हर इक कोना
जैसे माँ स्वीकारती है बच्चे का हर दुर्गुण
 उसी प्रेम से वह भी स्वीकारता है
मन के दाँव-पेंच
मन की सिलवटें
शर्त यही है जैसे माँ पर भरोसा करता है बच्चा
आँख मूंद कर
भरोसा जगे भीतर, वह साथ है हमारे....
और तब झरता है भीतर झरना 
प्रेम, शांति और आनंद का..
भीग जाता है कण कण 
और बहती है सुरभित हवा इर्द-गिर्द 
करती सुवासित वातावरण को 
जुड़ जाता है एक रिश्ता 
इस जगत से और जगदीश से भी..

शुक्रवार, अक्टूबर 28

कहाँ मिलेंगे कोमल रिश्ते


कहाँ मिलेंगे कोमल रिश्ते  

दीवाली अभी गयी नहीं है
भाई दूज  है याद दिलाता,
बहना के अंतर में निर्मल
स्नेह की पावन धार बहाता !

पुलक जगी कैसी भीतर जब
फोन की घंटी थी खनकाई,
कानों में भाई-भाभी की
प्रीत भरी जब ध्वनि सुनाई !

हफ्तों पहले भेज दिया था
बहुत सहेज के अक्षत-केसर,
मुहं मीठा करने को बांधा
छोटी सी पुडिया में शक्कर !

सदा सुखी हो प्रियजनों सँग 
यही दुआ मन आज दे रहा,
सहज हृदय की गहराई से
सबके हेतु यही कह रहा !

स्नेह ही है जीवन की थाती
दिल में इसे समाये रहते,
जग में सब कुछ मिल सकता है
कहाँ मिलेंगे कोमल रिश्ते !
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