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सोमवार, सितंबर 23

शृंगार

शृंगार 


सज गया स्मित हास अधरों पर 

नयनों में स्वप्नों का काजल, 

दुल्हन का श्रृंगार हो गया

मुखड़े पर लज्जा का आँचल  !


सहज मैत्री, विश्वास, आस्था 

आभूषण शोभित करते तन, 

करुणा, ममता और सरलता 

से ढँका-ढँका मन का हर कण !


ले चल प्रिय गृह आतुर इसको 

मधु शीत पवन की डोली में, 

नभ देखता नक्षत्रों संग 

 सूर्य-चन्द्र साक्षी बन आये !