शृंगार
सज गया स्मित हास अधरों पर
नयनों में स्वप्नों का काजल,
दुल्हन का श्रृंगार हो गया
मुखड़े पर लज्जा का आँचल !
सहज मैत्री, विश्वास, आस्था
आभूषण शोभित करते तन,
करुणा, ममता और सरलता
से ढँका-ढँका मन का हर कण !
ले चल प्रिय गृह आतुर इसको
मधु शीत पवन की डोली में,
नभ देखता नक्षत्रों संग
सूर्य-चन्द्र साक्षी बन आये !