चलन दुनिया का
जग का पहिया झूठ से चलता
भागे कोसों सच से डरता,
सदा मुखौटा ओढ़े रहता
पाखंडों पर ही यह पलता !
जाने किसका महाजाल है
जाने इस को क्या मलाल है,
थोड़ी सी वाह वाही सुन के
क्या पा लेने का ख्याल है ?
वाणी का वरदान था पाया
व्यर्थ ही उससे राग बढ़ाया,
झूठे आश्वासन को पोषा
वाणी को हथियार बनाया !
सम्बन्धों की गरिमा खो दी
झूठ ने सारी महिमा धो दी,
सच के बाने पहने आता
दिल में दूरी, कटुता बो दी !
अनिता निहालानी
१० फरवरी २०११
bahut sateek vishay ko kavita ke madhayam se swar diya hai aapne .badhai .
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