ए जी,खायेंगे न ?
“ए जी, चलेंगे न” की जब
श्रीमती ने लगाई पांचवी बार गुहार
तो झकमार, जूता पहन, श्रीमान
हो गए सांध्य भ्रमण को तैयार !
साथ ही चलने लगा अंतर्मन में
धाराप्रवाह सोचविचार,
कुछ स्वास्थ्य पत्रिकाओं का असर
कुछ आस-पड़ोस का देख व्यवहार
रोज-रोज चढ़ने लगा है
श्रीमती जी को टहलने का बुखार !
कहाँ गए वे दिन
जब रहा करतीं थीं व्यस्त,
बनाने में पापड़ और अचार
और इत्मीनान से चाय पीते
वह पढ़ा करते थे अखबार !
आज जिसे देखो वजन घटाने में लगा है
सेहत का हो रहा है गर्म बाजार
या फिर वजन नहीं उम्र घटाना चाहते हैं लोग
बुढ़ापे में हो जाता है अक्सर
जिंदगी से दुगना प्यार !
लगा विचारों को ब्रेक,
सामने आ गयी थी एक कार
पत्नी ने टोका, “कहाँ खो गए सरकार ?”
देखा कनखियों से, आ गया था
अचानक उनके चेहरे पर निखार !
नजर दौड़ाई तो दिखा एक ठेले वाला
कर रहा था जो गोलगप्पों का व्यापार
एजी, खायेंगे न, आँखों ही आँखों में
पढ़ लिया श्रीमती का इसरार !
अनिता निहालानी
१० फरवरी २०११
वाह अनिताजी ,
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत कविता |
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंमजा आ गया। चूंकि आपने हंसने पर पाबंदी लगा दी है, इसलिए मुस्करा कर काम चला रहा हूँ।
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ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
bahut badiya manthan..
जवाब देंहटाएंbhgambhag ke beech hasna tak aadmi bhulta jaa rahai hai.. ab kya kahen apni bhi kuch haalat aisi hi hai...
ati sunder
जवाब देंहटाएंhasy ke sath-sath vyngay bhi
---------sahityasurbhi.blogspot.com
ati sundar kavita !!
जवाब देंहटाएंअनीता जी,
जवाब देंहटाएंहा...हा..हा...;-)
बहुत सुन्दर......बेचारा पति नमक जीव.....
बेहतरीन .... लाजवाब . इस खुबसूरत रचना के लिए ......आपको बधाई ....मजा आ गया।
जवाब देंहटाएंआप सभी का तहेदिल से शुक्रिया !
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