जब अंतरदीप नहीं बाले
पूर्ण हुआ वनवास राम का, सँग सीता के लौट रहे हैं
अचरज हुआ लक्ष्मण को लख, द्वार अवध के नहीं खुले हैं !
अब क्योंकर उत्सव यह हो, दीपमालिका नृत्य करे,
रात अमावस की दमके, मंगल बन्दनवार सजे !
हमने भी तो द्वार दिलों के, कर दिये बंद ताले डाले
राम हमारे निर्वासित हैं, जब अंतरदीप नहीं बाले !
राम विवेक, प्रीत सीता है, दोनों का तो मोल नहीं
शोर, धुआँ ही नहीं दीवाली, जब सच का कोई बोल नहीं !
धूम-धड़ाका, जुआ, तमाशा, उत्सव का न करें सम्मान
पीड़ित, दूषित वातावरण है, देव संस्कृति का अपमान !
जलें दीप जगमग हर मग हो, अव्यक्त ईश का भान रहे
मधुर भोज, पकवान परोसें, मनअंतर में रसधार बहे !
$�#V�
जलें दीप जगमग हर मग हो, अव्यक्त ईश का भान रहे
जवाब देंहटाएंआपकी सुन्दर अभिव्यक्ति मन को पवित्र करती है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
दीपावली के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ.
आपको और आपके प्रियजनों को भी दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें|
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
जवाब देंहटाएंसादर
दीपावली की शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति………………दीपावली पर्व अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंप्यार हर दिल में पला करता है,
जवाब देंहटाएंस्नेह गीतों में ढ़ला करता है,
रोशनी दुनिया को देने के लिए,
दीप हर रंग में जला करता है।
प्रकाशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!!
अनीता जी नमस्कार, सुन्दर पंक्तियां --हमने भी तो ------राम हमारे-- जब अन्त्र दीप नही जाले। मेरे भी ब्लाग पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएं